शीर्षक - हमारी सोच.... कुदरत
रंगों की बौछार हो, खुशियों का त्यौहार हो
दोस्तों बस मतलब से ही मतलब हो,
इश्क के चादर में इतना न लपेटिये कि तन्हाई में डूब जाएँ,
जो भी पाना है उसको खोना है
अच्छा बोलने से अगर अच्छा होता,
गजल
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
रमेशराज के 'नव कुंडलिया 'राज' छंद' में 7 बालगीत
मेरे पिता की मृत्यु
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
पथरा गई हैं आँखें , दीदार के लिए यूं
नई सीख को सिखाकर जाने लगा दिसंबर
किसी चीज का सहसा सामने आ जाना ही डर है।