कोमल कली

नव सौंदर्य की पल्लव
पर्यावरण की सुरभि हूँ
देवी देवों की अराधना
पूजा की सुंदर थाली हूँ
मण्डप की साज सज्जा
शादी ब्याह की गवाह हूँ
प्रेयसी दिल चाहता का
प्रीतम हाथों का इज़हार
नव मिलन की वाणी हूँ
सारे जहां की पहचानीं
जाति धर्म कर्म मज़हब
रंग रूप भेष भाषा नहीं
दिलोंजान की प्यारी हूँ
वाग बगीचा घर धरती
माता मेरी सबसे प्यारी
नीला आसमां हैं पिता
जल वायु से गहरा नाता
सूरज भैया है मेरा प्यारा
पोषक तत्वों से पाला पोसा
रूप सौन्दर्य की महारानी मैं
मधुर मुस्कान की मुग्धा हूँ
नन्हीं कली में बचपन मेरा
हरी भरी नव किसलय डाली
सकुन भरा कोमल विस्तर है
पवन भैया झूला झूलाता
कोयल की कूक है प्यारी
पहपिहे की टेर है न्यारी
भॅवरे मॅडराते गूंजते स्वर
मन्द मन्द वायु थपकियाँ
गहरी निंदिया सुलाती है
श्याम सलौने चंदा मामा
पुंज चाँदनी की रातों में
विविध खेल खेलाती हैं
फूल कुसम प्रसून सुमन
नामों से प्यार दिखाती हैं
ओस कण मुंह धोता मेरा
सूर्य की सुनहरी किरणें हमें
खिल खिलाकर हँसाता है
कविवर कल्पना की ये सुन
वाणी से फूला न समाता हूँ
नहीं पराग नहीं मधुर मधु
नहीं विकास इहि काल
अली कली ही सौं बिंध्यौं
आगे कौन हवाल ????
मदमस्तों का चेतन राग मैं
व्यंग आवाज मधुर स्वर हूँ
बता दे जरा मैं हूँ कौन यहाँ
कोमल कली नव पुष्प हो ?
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टी .पी तरूण