अनुपम स्वर्णिम सी आभा हमारी वीणापाणि की
अनुपम स्वर्णिम सी आभा हमारी वीणापाणि की
धवल वस्त्रों में शोभित है मनोहर वरदायिनी मुद्रा
अहो सुन्दर भली छवि है हमारी हंसवाहिनी की
विराजो मन के भावों में कलुष तम भेद को हर लो
नवल गति ताल नव लय छंद करो जगमग ये अंतर्मन
तेरे नयनों से बहती है निरंतर ज्ञान की धारा
हैं शरण हम दो हमें आशीष भावों से रहें निर्मल
विराजो लेखनी मे यूं रचे सद्ज्ञान की गंगा
हरो मां मन का अंधियारा नमन तुमको ज्ञानदायिनी
स्वरचित काव्य
स्वर्णिम तिवारी