“उन योद्धाओ की बात ही अलग थी।

“उन योद्धाओ की बात ही अलग थी।
धर्म की आन को ,
स्वराज के प्राण को ,
अपने रक्त से जो सींचते थे,
मातृ भूमि के रक्षण को ,
अधर्म के नाश को ,
जो अपने कर्मों से बीनते थे।
मृत्यु जिनसे भयाक्रांत थी,
साहस भी जिनका ग़ुलाम था ,
शत्रु नाम मात्र से काँपते थे ,
सिंह भी जिनसे घबराते थे ,
शेषनाग सा जो फुँकारते थे ।
घोर यातनाएँ भी ना जिन्हें ना डगमगा पाई ,
सब न्यौछावर कर विजय पताका जिन्होंने लहराई ।
उन शूरवीरों के व्यक्तित्व में वाक़ई में ख़ास बात थी ,
माटी के सपूतों की ,
उन योद्धाओ की बात ही अलग थी ।
नीरज कुमार सोनी
“जय श्री महाकाल”