ना जाने किसने छेड़ा है
चंचल मन के कोमल तारों को ना जाने किसने छेड़ा है,
झंकार नहीं थी, उन तारों को ना जाने किसने छेड़ा है।
बंद पड़े थे सप्तक सारे, जीवन की सूनी बगिया के,
आज अचानक उस सप्तक को, ना जाने किसने छेड़ा है।
उत्साह नहीं था रंग नहीं,कोई राग नहीं था जीवन में,
अनुराग विहीन जीवन था मेरा, ना जाने किसने छेड़ा है।
बिन सुर के यह जीवन, दुख और विषाद की खाई थी,
मृतप्राय पड़े मेरे जीवन को, न जाने किसने छेड़ा है।
सबके साथ चला करता था सबको लेकर चलता था,
अपनी ताल से ताल मिला के, ना जाने किसने छेड़ा है।
इति।
इंजी. संजय श्रीवास्तव
बालाघाट मध्य प्रदेश
9425822488