!! फिर से !!
युगों-युगों से जो कही गई
कहना चाहूं बात वही फिर से।
सदियों से जो ढो रहे
ये बोझ चाहूं उतारना सिर से।१
नम नयन न्रम कथन से
आज निवेदन करता हूं धीरे से।
हे मानवश्रेष्ठ ! हे सृजनश्रेष्ठ !
थोड़ा फिर सोच नये सिरे से।२
मानव से मानव प्रेम का
नाता है ये सबसे गहरा।
प्रेम पवित्र पल्लवित-पुष्पित हो
इन पुष्पों को हो कांटों का पहरा।३
सम्मान सबका करना है
चाहे विचार सबके हैं अनेक।
कोई बड़ा कोई छोटा नही
यहां सबके सब हम हैं एक।४
यही बात कही गई है
चर्च मठ मस्जिद मंदिर से।
युगों-युगों से जो कही गई
कहना चाहूं बात वही फिर से।५
शाश्वत सत्य परम सत्य
अंतिम सत्य तो एक ही है।
कहने की अपनी-अपनी रीति
पर सबके अर्थ तो नेक ही है।६
ये तो सबका ही सच है
सूरज देता प्रभात तिमिर से।
युगों-युगों से जो कही गई
कहना चाहूं बात वही फिर से।७
सुख-दुख तो दिन जैसे है
कभी कही धूप है कही छांव है।
एकसार नही रह सकते कभी
यहां होना ही होता है बदलाव है।८
सुख-दुख में पहचाने जाते
आते-जाते लोग जग शिविर से।
युगों-युगों से जो कही गई
कहना चाहूं बात वही फिर से।९
ये जीवन बहती नदियां
और मृत्यु है सिंधु अपार।१०
खोना नही समाना जिसमें
वही से वही जग का सार।११
गति जीवनकर्म से आती
नही मृत्यु जड़ स्थिर से।
युगों-युगों से जो कही गई
कहना चाहूं बात वही फिर से।१२
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मौलिक और स्वरचित: कविता प्रतियोगिता-४
रचना संख्या-०१. फरवरी, २०२५ -©जीवनसवारो