चंद शेर

कुछ गलत हुआ मुझसे , कुछ सही हुआ मुझसे
न ये मेरे बस में था , न वो मेरे बस में था !
मैं साँस ले रही थी , कोई और जी रहा था
ये कौन था भीतर , जो साथ चल रहा था !
जमाना चलता ही रहा , और हम हैरान से ताकते रहे
क्यों रास्ते यूँ सब जुदा हुए , और हम तन्हा रहे !
ख़ामोशी भी इक जुबां है , जो दब सी गई है
तेरी मेरी बदहवासी में , मर सी रही है !
—— शशि महाजन