आवरण से श्रृंगार किया……
आवरण से श्रृंगार किया……
आवरण से श्रृंगार किया
माया से किया प्यार
अन्तकाल संसार ने
सब कुछ लिया उतार
अद्भुत प्रकृति है जीव की
ये भटके बारम्बार
लो लगाये न ईश से
पगला बिलखे सौ सौ बार
शीश झुकाये मन्दिर में
जैसे हो मजबूरी
अगरबत्ती भी ऐसे जलाए
जैसे ईश पे करे उपकार
कपट कुण्ड में स्नान करे
और विकृत रखे विचार
कैसे मिलेगा जीव तुझे
उस पालनहार का प्यार
सत्य धर्म है,सत्य कर्म है
सत्य है जीवन आधार
ईश स्वयं तुझे अपनाएंगे
कर सत्य को अंगीकार, कर सत्य को अंगीकार…..
सुशील सरना