एक भजन :- इन आँखों पर न कर एतबार

एक भजन :-
इन आँखों पर न कर एतबार,
इन आँखों पर न कर एतबार, रे पगले !
ये और तुम्हें भटकाएगा…
नजरें तो टिका, प्रभु द्वार, रे पगले !
जो भवसागर पार कराएगा…
इन आँखों पर न कर…
खोलो मन की आंखें,ये तन का छाया,
ये तो कालचक्र जग की माया।
ये है घन अवगुंठन, अनन्त जगत का,
सोचो अब तक, तूने क्या पाया।
तू अब न कर, इन्तजार, रे पगले !
फिर समय नहीं मिल पाएगा…
इन आँखों पर न कर…
हर आहट पर घबराता मन,
चाहे तन पर हो अनमोल वसन।
फिर चकाचौंध, क्यूँ मोहित पगले !
ये और तुम्हें भरमायेगा…
इन आँखों पर न कर…
बस बहता है मन, ये मन का घोड़ा,
फिर अन्त समय, सब कोरा-कोरा।
सहज सुभग, सुन्दर रवि छवि सा,
प्रभु कमलनयन मूरत गोरा-गोरा।
बस दर्शन तो कर एकबार, रे पगले !
फिर अंतकाल पछताएगा…
इन आँखों पर न कर…
मौलिक और स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – २२/०१/२०२५
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विक्रम संवत २०८१
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