sp 63 बुनियाद भावनाओं की
sp 63 बुनियाद भावनाओं की
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बुनियाद भावनाओं की धस गई जमीन में
हम खड़े हैं खंडहर पर बस इसी यकीन में
समय बदलेगा हमारा हम निकल के आएंगे
इस जमाने को कभी अपनी व्यथा बताएंगे
जिंदगी का हिस्सा थे हम इस महल की जान थे
थी हमारे दम से रौनक ऐसा इत्मिनान थे
लेकिन हमारा मन स्वयं करता है खुद से यह सवाल
कड़वे सच से डर गए हम तो बड़े नादान थे
कहते थे हम आए यहां ईमान बोने के लिए
लेकिन समझ में आ गया वह तो बड़े बेईमान थे
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डॉक्टर इंजीनियर
मनोज श्रीवास्तव
यह भी गायब वह भी गायब