बिक रहे थे दोनों

बिक रहे थे दोनों
क्या औरत क्या आदमी
आदमी बिका तो दुल्हा बन गया
औरत बिकी तो वैश्या
कमरा था बंद एक
थे दोनों निर्वस्त्र
आदमी फिर आदमी रहा
औरत बनी वैश्या
सारे राह बाजार में
मनचले जो छेड़ दे उसको
आदमी को कुछ ना कहा
औरत का चरित्र फिर वैश्या
प्रेम में सुध बुध खोई उनकी
मन के साथ तन भी मिले
आदमी फिर चरित्रवान ही रहा
औरत लाज बेच कर वैश्या
जीवन में अगर कुछ। मूल्यवान है
वो सिर्फ आत्मसम्मान है