रावण का अंतिम क्षण

रावण का अंतिम क्षण
जब रणभूमि में पड़ा, विवश, पराजित,शक्ति और अभिमान सब, हो गए शांत।
सिंहासन छूटा, धनुष भी टूट गया,राजा से केवल एक प्राणी रह गया।।
शेष बची थी बस कुछ अंतिम साँसें,मन में उमड़तीं असंख्य आवाज़ें।
क्या पाया, क्या खोया इस जीवन में?क्या अर्थ था मेरे अहं और क्रोध में?
तभी स्मरण आया, वह सत्य अमर,जिसे हर बार मैंने ठुकराया निर्भर।
राम, वह नाम जो शांति का स्वरूप,सत्य, प्रेम और धर्म का आरूप।।
गर्व से तना वह मस्तक झुक गया,जीवन भर जिसे झुकाना असंभव था।
अंतिम क्षणों में गर्व का परदा हटाया,और हृदय से राम का नाम दोहराया।।
“हे राम! जो मैं न समझा पूरे जीवन,आज समझा इस अंतिम क्षण।
तुम्हारा नाम ही है सच्चा मार्ग,जो मिटा सकता है हर मन का भार।।
रावण ने छोड़ा जीवन का अहंकार,राम के नाम से किया आत्मा का उद्धार।
अंततः समझा सत्य का आधार,कि राम ही हैं परम सत्य, संसार का सार।।