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24 May 2024 · 1 min read

भाग्य

भाग्य बना है कर्म से,कहते वेद पुराण।
ज्ञानी वक्ता सब कहें,मिलते धरा प्रमाण ।।

जिसके जैसे कर्म हो,बैसा बनता भाग्य ।
संचित अरु प्रारब्ध से , कुयोग या सौभाग्य।।

जैसा जिसके भाग्य में, पूर्व कर्म का योग।
वैसा पाता जगत में,जुड जाते संयोग ।।

भाग्य लिखा को जानता,कौन बने धनवान ।
कौन गरीबी से जिए,समय बडा बलवान ।।

भाग्य साथ देता जिसे,बनता मालगुजार।
कर्म हीन सहता सदा, पूर्व कर्म की मार।।

भाग्य विधाता ने लिखा, तोड़ लिखा निज हाथ।
अच्छी करनी जो करें,ईश्वर उनके साथ।।

भाग्य परिश्रम बदलता,संग ईश विश्वास।
राम भक्ति अरु कर्म फल,कभी न होते नाश।।

राजेश कौरव सुमित्र

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