शीर्षक -"मैं क्या लिखूंँ "
"कदम्ब की महिमा"
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
तेरी दुनिया को ही अपना घरबार समझते हैं,
"हां, गिरके नई शुरुआत चाहता हूँ ll
तुम्हारा दिल ही तुम्हे आईना दिखा देगा
Baat faqat itni si hai ki...
आपने जो इतने जख्म दिए हमको,
यदि कार्य में निरंतरता बनीं रहती है
भ्रष्टाचार का बोलबाला, जब हो न्याय के मुंह पर ताला: अभिलेश श्रीभारती
Abhilesh sribharti अभिलेश श्रीभारती
మువ్వగోపాల మురళీధరాయ..
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'
बुन्देली दोहा - चिरैया
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
*आत्मश्लाघा के धनी, देते है अब ज्ञान।
तू शबिस्ताँ सी मिरी आँखों में जो ठहर गया है,
आदत ही तेरी ओछी है, वरना चाय-पानी इतना बदनाम नहीं होता .....