दोहा सप्तक.. . . चिट्ठी
दोहा सप्तक.. . . चिट्ठी
कहाँ गया वो डाकिया, जादूगर इंसान ।
गली- गली में बाँटता, रिश्तों की मुस्कान।।
पीली चिट्ठी प्यार की, जब आती थी द्वार ।
लगता था जैसे मिला, बिछड़ों का संसार ।।
लोहे के सन्दूक में, कहें पुराने पत्र ।
लौटा दो वो काल फिर, महकूँ मैं सर्वत्र ।।
आई चिट्ठी डाकिया, जब देता आवाज ।
जाने कितने हृदय में, झंकृत होते साज ।।
छींटे केसर के करें, खुशियों की बरसात ।
कोना चिट्ठी का फटा, दुख का दे आघात ।।
बाट जोहते पत्र की, मन जब जाता हार ।
खाना- पीना छोड़ कर , करते थे फिर तार ।।
कितना भी हो आधुनिक , मोबाइल संसार ।
कहाँ मिलेगा वो मगर, चिट्ठी जैसा प्यार ।।
सुशील सरना/11-1-25