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31 May 2024 · 1 min read

आने वाला कल

आने वाला कल
मैंने नहीं देखा,
फिर भी कल की चाह
में आज को भुला देता हूँ |

आजीविका पे नित्य
निकल पड़ता हूँ
कल को सवारने,
के लिए आज
की खुशियों को
न्योछावर करता बढ़ता हूँ |

कल से कुछ उम्मीद है
पर वो कल ही बताएगा
उम्मीद उम्मीद ही रहेगी
या उम्मीद नये कल,
की उम्मीद बन जायेगी
ये पहेली भी कल पे
फ़िलहाल हैं |

आज को परवाह है
कल की,
हर पल बस कल को
समर्पित किये जा रहा हैं |

नींद को भी समझा
दिया मैंने,
जब तक में न बुलाऊँ
तब तक आये न मेरे नयन में |

ऐसे ही फिरूँगा
तो समाज में बोझ बना दिखूँगा
उससे तो अच्छा है कुछ करूँगा,
आज कुसुम बनके खीलूँगा
तो ही तो का महककूंगा

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