*मां से अनकही बातें*
है ये चाहत मेरी कि
इस बार की छुट्टियों में,
जब मैं घर जाऊँ तो
कह दूं अपनी मां से,
जो मैं कभी कह नहीं पाया उनसे।
कह दूं उनसे कि
बहुत प्यार करता हूँ मैं तुमसे,
बहुत अच्छा लगता है
तेरे पैरों का स्पर्श,
तेरे हाथ की रोटियां खाना,
आज भी।
अच्छा नहीं लगता उसके बाद
बिछड़ने का वो पल,
जब मेरी छुट्टी ख़त्म हो जाती है,
और उदास होकर
लौटना पड़ता है वापिस शहर में!
शहर में लौटकर फिर,
व्यस्त हो जाता हूं अपने काम में,
फिर मां फ़ोन पर पूछती है,
तू कब आएगा घर?
रूखे से शहर में मैं भी,
एक रूखा सा जवाब दे देता हूं,
अभी पता नहीं मां, कह देता हूं!!
फिर रात को जब,
थककर सोता हूं अकेला,
मन में कुछ सवाल आते हैं,
क्या उस समय को,
जब मां के पास होते थे
हम खो देते हैं?
क्या उस स्नेह को,
जो उनके हाथों में था,
हम भूल जाते हैं?
मां के बिना दुनिया सूनी लगती है,
उनके बिना घर, घर नहीं लगता
कभी सोचता हूं,
अगर ये सब उनसे कह पाता,
तो क्या वो हंसी नहीं होती?
जो हर मुलाकात में थी।
कभी ये भी सोचता हूं
क्या मां समझ पाती,
क्या वो जान पाती कि
मेरे दिल में कितना प्यार है,
मेरी चुप्पी में बसी है
उनकी यादें।
मेरे घर लौटने पर होती है
उनके चेहरे पर जो मुस्कान
क्या उसे शब्दों से व्यक्त कर पाता?
या फिर वो हर बार
मेरे खामोशी को मेरी आंखों से
पढ़ लेती?
अब सोचता हूं,
कितनी बातें मां से कह नहीं पाया,
कितनी बातें वो समझ पाई,
क्या वो भी कभी चाहती है,
कि मैं उन्हें यही सब बताऊं?
है ये चाहत मेरी,
कि इस बार घर जाकर,
उनसे कह दूं,
कितना प्यारा है उनका होना,
कितना सुकून है उनके पास रहना,
कितना खूबसूरत है
वो हर पल जो उनके साथ बीतता है।
तुमसे ही तो,
मेरी पहचान बनी है मां,
तुमसे ही तो,
मेरे जीवन का रास्ता मिला है मां
जब भी तुम मुझे याद करती हो,
मेरे दिल में एक आहट सी होती है मां
क्या तुम भी मुझसे यही चाहती हो,
कि मैं तुमसे यही सब कह दूं मां!!
शायद अब ये समय है,
जो मेरे दिल में दबी बातें,
तुम तक पहुंचाऊं,
क्योंकि अब मुझे समझ आया
तुमसे ज्यादा प्यारा कोई नहीं है
इस पूरे ब्रह्मांड में!!