सुन-सुन कर दुखड़ा तेरा, उसे और वह बढ़ाती गई,
सुन-सुन कर दुखड़ा तेरा, उसे और वह बढ़ाती गई,
तेरे भीतर छिपी ज़िंदगी, तेरी बातें सच बनाती गई।।
जब-जब भी तन्हाई में, तूने गहरी सांसें लीं,
हर आहट चुपचाप तेरी, एक गूंज बना सुनाती गई।।
तेरी आँखों के सपनों में, कुछ रंग पुराने बिखरे थे,
उनमें छुपा दर्द, बिना कहे ही, हर बात को समझाती गई।।
वो पास न होकर भी तुझसे, एक रिश्ता जोड़ गई,
खामोशी के हर इक पहलू को, अपनी याद दिलाती गई।।
तेरे मन के सूने आंगन में, कुछ पत्ते पीले झरते थे,
वो हर झरते पत्ते संग तुझको, बीता वक़्त दिखाती गई।।
जो चाहा था, कभी न मिला, ये दर्द तेरा हर दिन बढ़ा,
तेरी उम्मीदों की बगिया को, हर क्षण बस वो जलाती गई।।
फिर भी तू हारा नहीं, तेरी रूह का था कुछ और सफ़र,
हर चोट के पीछे तेरी हिम्मत, एक दीवार बनाती गई।।
इस दुनिया की भीड़ में, तू यूं ही अकेला चलता रहा,
तेरे अपने ही सपनों की एक नयी राह बनाती गई।।
सुन-सुन कर दुखड़ा तेरा, उसे और वह बढ़ाती गई,
तेरे भीतर छिपी ज़िंदगी, तेरी बातें सच बनाती गई।।