यादों का थैला लेकर चले है
मुझे नाम नहीं चाहिए यूं बेनाम रहने दो
अनुरक्ति की बूँदें
singh kunwar sarvendra vikram
- बाप व्यभिचारी बेटे लाचार -
लोगो को उनको बाते ज्यादा अच्छी लगती है जो लोग उनके मन और रुच
आये जबहिं चुनाव
अटल मुरादाबादी(ओज व व्यंग्य )
सूर्य देव की अरुणिम आभा से दिव्य आलोकित है!
सभ्यों की 'सभ्यता' का सर्कस / मुसाफिर बैठा
दुनिया कैसी है मैं अच्छे से जानता हूं
#तेरा इंतज़ार है
वेदप्रकाश लाम्बा लाम्बा जी
तेरी तस्वीर को लफ़्ज़ों से संवारा मैंने ।
भ्रमण
Mrs PUSHPA SHARMA {पुष्पा शर्मा अपराजिता}