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28 Oct 2024 · 6 min read

बुंदेली दोहा -चपेटा संकलन – राजीव नामदेव राना लिधौरी

सुप्रभात
नमन, #जय_बुंदेली_साहित्य_समूह #टीकमगढ़

आज #सोमवार को #बुंदेली_दोहा लेखन का दिन है #बुंदेली में प्रदत्त शब्द – #चपेटा
पर केंद्रित दोहे पोस्ट कीजिए।
[28/10, 8:47 AM] Rajeev Namdeo: बुंदेली दोहा बिषय- चपेटा

खेल चपेटा खेल में,मौड़ीं हाथ चलाँय‌।
उलटे सूदे पौर कर,#राना गोट उठाँय।।

बिटियन के सँग बैठ कै,गये चपेटा सीख।
रुगनचियाई हौत ती,’राना’ मौं सैं चीख।।

पथरन के कउँ लाख के,बने चपेटा खूब।
#राना सब चौकोर थे,कभउँ भई ना ऊब।।

नहीं चपेटा अब दिखत,’राना’ बिसरीं शाम।
मौड़ी बैठे बायरै,खेलें जब अविराम।।
*** दिनांक – 28-10-2024
✍️ राजीव नामदेव”राना लिधौरी”
संपादक “आकांक्षा” पत्रिका
संपादक- ‘अनुश्रुति’ त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email – ranalidhori@gmail.com
[28/10, 9:34 AM] Pramod Mishra Baldevgarh: ,,बुन्देली दोहा विषय ,, चपेटा,,खेल
************************************
अपने खण्ड बुँदेल में , हौत चपेटा खेल ।
पथरन की गौटैं रतीं , लिखें “प्रमोद”उसैल ।।

बिटियाँ भइँ दो चार ठउ , ल्यांँइँ पथरियाँ बीन ।
अब “प्रमोद”खेलन लगीं , सुनो चपेटा छीन ।।

रुँचयाइ सें खेल में , किलकिल करें बिलात ।
मार चपेटा मूँढ़ में , जब “प्रमोद”भग आत ।।

जेठ माँस के दिनन में , कर्री होय दुपाइ ।
खिलत चपेटा पौर में , करें “प्रमोद”ढिराइ ।।

खेल गरीबी सें जुड़ौ , तन मन कसरत सार ।
धरै चपेटा घौरकैं , करें “प्रमोद”विचार ।।

गौरी फसकल मारकें , रहीं चपेटा झेल ।
टुक्क लगा देखन लगें , है “प्रमोद”का खेल ।।

सिया चपेटा लै भगीं , दिया ढूंढ़वे जाय ।
जो “प्रमोद”नव खेल है , लुका छुपी कहलाय ।।
*************************************
,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़ मध्य प्रदेश,,
,, स्वरचित मौलिक ,,
[28/10, 10:07 AM] M.l.Ahirwar ‘tyagi’, Khargapur: सोमवार २८.१०.२०२४
दोहा शब्द -चपेटा

परो मोडियन को जिजी, फिरत चपेटा ऐन।
बैठ चपेटन खेलरइं,सखी सहेलीं बैन।

नागनटापू खेलमें,गोडे लगे पिरान।
गओ चपेटन खेलबे पै,फिर उनको ध्यान।

पांच सात नो एकसे,लए चपेटा हांथ।
सखीं सहेलीं बैठकें,खेलें एकइ साथ।

खूब रुगंताई करी,पैल चपेटन खेल।
मगर बुराई नइंरही,बनो खूबरव मेल।

खेल चपेटन को गईं,अब सब
मोडीं भूल।
लूडो पबजी खेलकें,लगीं कमाबे कूल।

एम एल त्यागी खरगापुर।
[28/10, 10:50 AM] Pradeep Khare Patrakar: प्रदीप खरे, मंजुल
विषय -चपेटा
28-10-2024
——————————–
चार जनी बैठी हतीं,
लयैं चपेटा हात।
चौका में चावल चढ़े,
चौक चमन बरसात।।
*
चार चपेटा, चार तीं,
बीच चौक में नार।
करैं बुराई सास की,
खायें सबरीं खार।।
*
सावन आतन डर गये,
झूला सबरे हार।
भौंरा, चकरी घुम रहे,
रहीं चपेटा पार।।
*
चूनर धानी पैर कैं,
बैठीं सखियन बीच।।
लयैं चपेटा हात में,
प्रेम बेल रइ सींच।
*
गांवन में अब नहिं रहे,
आज पुराने खेल।
हिरा चपेटा से गये,
छुक-छुक करती रेल।।
प्रदीप खरे, मंजुल
टीकमगढ़
[28/10, 11:45 AM] Subhash Singhai Jatara: विषय – चपेटा

आमैं -सामैं बैठ कैं , गुइयाँ करबैं मेल |
चले हथेली की कला , खिले चपेटा खेल ||

पैल चपेटा थाम कै , उलटी गदिया ल्याँय |
एक चपेटा लें बचा , गोट बना उचकाँय ||

चौपाला हौबै सबइ , जिनै चपेटा कात |
छोटी लगती गोटियाँ , मौड़ी खेलन जात ||

चैंचें पैंपे हौय जब , हम तो कातइ ठेट |
सबइ चपेटा चाप कैं , मौड़ीं भगै चपेट ||

सुभाष‌ सिंघई
[28/10, 1:43 PM] Asha Richhariya Niwari: 1🌹
बिटियां बैठीं आंगन,लियें चपेटा हाथ।
गुुइयां बाजू खेल लो,चार जनीं हैं साथ।।
2🌹
ग्यारा तेरा पन्दरा,लयें चपेटा ऐन।
आ कें सावन मायके,खेलें सबरी बैन।।
3🌹
बने चपेटा लाख के,ससुर सावनी ल्यात।
बड़ी ठसक सें सबइ खों,हलकी बेन दिखात।।
4🌹
खूब चपेटा खेल कें,नहीं जीत जब पात।
रिच्याई भयी सबइ पे,दोष लगा भग जात। ।
आशा रिछारिया जिला निवाड़ी🌹🙏🏿🌹
[28/10, 3:32 PM] Dr Renu Shriwastava: दोहे विषय चपेटा
✍️✍️✍️✍️✍️
मँहदी हाथन में लगी,
रहीं चपेटा पार।
सावन में गुइयाँ मिलीं,
देखत सब परिवार।।

जिज्जी की जा सावनी,
लाख चपेटा आँय।
लोरी बेना सखिन खों,
दिखा दिखा इतराँय।।

सिद्धा उल्टा लेत ते,
गुइयां बाजू खेल।
सखी सहेली मिलत थीं,
खेल चपेटा पैल।।

अब ना सावन में दिखें,
लये चपेटा हाथ।
मोबाइल बस रै गओ,
नोने सबके साथ।।

कलजुग ऐसो छा गओ,
सबके मन में पाप।
ननतर मोड़ी खेलतीं,
लयें चपेटा आप।।
✍️✍️✍️✍️✍️
डॉ रेणु श्रीवास्तव भोपाल
सादर समीक्षार्थ 🙏
स्वरचित मौलिक 👆
[28/10, 4:35 PM] Brijbhushan Duby2 Baksewaha: दोहा
विषय -चपेटा
1-चलो चपेटा खेलवे,
अब तो समय निकार।
कामकाज दिन भर लगो,
चाली हो दो चार।।

2-लगी चपेटा खेलवे,
सुनवे नइ सबयार।
बृजभूषण कब सें दते,
बुला बुला गय हार।।

3-पैल चपेटा ते खिलत,
अब खेले ने कोय।
खेल टूट गय का करें,
खिलत दिखे ने मोय।‌‌।

4-कितनो नोनो तो लगत,
खिलत चपेटा होय।
बृजभूषण देखें खड़े,
हारे जीते कोय।।

5-अबे चपेटा नइ परो,
सुनो समझ में आय।
खात पियत डोलत फिरत,
उल्टी लगत सलाय।।
बृजभूषण दुबे बृज बकस्वाहा
[28/10, 5:25 PM] Rajeev Namdeo: जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़ के फेसबुक पेज से साभार

दि०२८-१०-२०२४ नमन मंच।
प्रदत्त शब्द-चपेटा(बुंदेली)

गाॅंवन की जब औरतें, फुर्सत हो जात।
ककरन सेंं खेलन लगत ,उन्हें चपेटा कात।।

सावन में खेलत अधिक ,तब न होतइ काम।
उठा चपेटा खेलतइ,लगत न एक छदाम ।।

आज चपेटा बिकत हैं, नौने और टिकाउ।
देखत में अच्छे लगत, लख कर मन हरसाउ।।
***
मौलिक,स्वरचित

“डाॅ०हरिकिंकर’ ललितपुर
[28/10, 6:09 PM] Bhagwan Singh Lodhi Hata: बुन्देली दोहे
विषय:-चपेटा पत्थर के गोलाकार टुकड़े (बड़े कंकड़)
हल्के में खेले बिकट, बैठ चपेटा रोज।
अब न‌इॅं मिल रय देखबे,मिट गव जर सें खोज।।

दुग‌इ अथाई चौंतरा, बड़े दाउ की पोंर।
रोज चपेटा खेल कें,खाई मेपर भोंर।।

छुड़ा लयें मोबाल नें गाॅंवन के सब खेल।।
आव चपेटा खेलिए, सब सें करकें मेंल।।

छड़ी चपेटा खुनखुना,पुंगी फुग्गा गेंद।
सावन में जैस‌इ दिखे, तुरत लगा‌इ सेंद।।
-भगवान सिंह लोधी “अनुरागी”
[28/10, 6:26 PM] Jaihind Singh Singh Palera: सोमवार दिनांक 28.10.2024
बुन्देली दोहा दिवस/नारियल
****************************
//1//
श्रीफल एक गवाह है लरका पक्कौ होय।
हाॅंत नारियल धरत हैं ,बीज व्याव के बोय।।

//2//
जितै नारियल होय तौ जानो मंगल काज।
हर पूजा में जो लगै ,बजबें मंगल साज।।

//3//
पावन संगम की तरह, होय नारियल नीर।
जो नित पानी जौ पिए ,हुए कभ‌उ
मत पीर।।

//4//
नार नारियल की गरी पुरुष खोपड़ा जान।
शिव गौरा कौ रूप है, जो अर्द्धांग समान।।

//5//
भाव नारियल की तराॅं कैउ जनैं के रात।
ऊपर से हों कड़कते, भीतर कोमल बात।।

जयहिन्द सिंह जयहिन्द
पलेरा जिला टीकमगढ़
मध्य प्रदेश
[28/10, 7:02 PM] S R Saral Tikamgarh: बुन्देली दोहा विषय -चपेटा

साउन कों मइना लगों,
भओं सखिन कों मेल।
सब सखियाँ बतया रईं,
लेव चपेटा खेल।।

सखीं चपेटा खेल रइँ ,
मन में भरें उमंग।
कैरइँ केऊ साल सै,
भव सकियन कों संग।।

सकी चपेटा खेल लो,
साउन कों त्यौहार।
चउआ पचुआ खेल कै,
करवे चलें बजार।।

सकीं चपेटा चाँप कै,
खेलन भइँ तैयार ।
चटके पुसके खेल रइँ,
सकियाँ अँगना द्वार।।

सरल चपेटा खेल कै,
सकियाँ मन हर्षात।
कत साउन नौनों लगें,
सकियाँ सब मिलजात।।

एस आर सरल
टीकमगढ़
[28/10, 7:18 PM] S R Saral Tikamgarh: दाउ चपेटा खिल रये, रखो नारियल दूर।
पाँच नईं दोठउ लिखों,लिख दो दाउ जरूर।।

लिखो चपेटा दाव जू,विनय करो स्वीकार।
आज चपेटन खेल रय, सबरे रचनाकार।।
[28/10, 7:22 PM] Ramanand Pathak Negua: दोहा बुन्देली
बिषय चपेटा
1
साउन के बाजार सें, कई खिलौंना ल्यात।
रँगे चपेटा बाँसुरी, तबइ साँउनी जात।

2
चार सखी आ दोर में, बैठ संग बतयात।
उठा चपेटा खेलबें, हँसती और हँसात।
3
पथरा ढूँढत दूदिया, चीलबटा के संग।
बना चपेटा खेलतीं, पुलकित होबें अंग।
4
खेल बडाबै भावना, कौनउँ होबै खेल।
होंयँ चपेटा जोगिया, आपुस बडबै मेल।
5
छुबा चपेटा नौरता, सब बिटियन खों भात।
नागिन टिप्पू चंगला, ऐनइँ उनैं पुसात।
रामानन्द पाठक नन्द
[28/10, 7:45 PM] Hariom Shriwatava Bhopal: विधा – दोहा (बुंदेली)
विषय – चपेटा
•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
1-
हरे लाल पीरे रँगे, लकड़ी के चौकोर।
इतै चपेटा खिल रए, उतै नचत हैं मोर।
2-
झट्ट चौंतरा झार कें, बैठीं गुइयाँ चार।
खूब चपेटा खेल रइँ, दै-दै कें पुचकार।।
3-
साउन में गुइयाँ मिलीं, जब फुरसत में चार।
तभइँ चपेटा खेलवे, बैठीं पाँव पसार।।
4-
चलो चपेटा खेलिएँ, निपट गए सब काम।
बरिया के नैचें चलो, हियाँ भौत है घाम।।
5-
नक्का-थप्पा हो रए, इकिंयाँ-दुकिंयाँ खूब।।
सबइ चपेटा खेलकें, गईं उनइँ में डूब।।
(स्वरचित व मौलिक)
हरिओम श्रीवास्तव
भोपाल, म.प्र.
[28/10, 7:54 PM] Gokul Prasad Yadav Budera: बुन्देली दोहे, विषय-चपेटा
********************
ऊनी संख्या खों इतै,
पावन मानों जात।
पाँच सात नौं एइ सें,
खिलत चपेटा स्यात।।
****
जितै चपेटा खेलतीं,
हिल मिल भोजी-नंद।
बैमनस्यता खों उतै,
दरवाजे रत बंद।।
****
बहू चपेटा खेल रइ,
काम डरो सबयार।
घलो चपेटा सास कौ,
दौरी करन कबार।।
****
होत चपेटा खेल में,
हाँतन कौ व्यायाम।
आँखन की जोती बड़त,
खरच न होत छिदाम।।
*********************
गोकुल प्रसाद यादव नन्हींटेहरी

#राजीव_नामदेव #राना_लिधौरी #टीकमगढ़
#rajeev_namdeo_Rana_lidhori #tikamgarh
#Jai_Bundeli_sahitya_samoh_Tikamgarh
#जय_बुंदेली_जय_बुंदेलखण्ड
मोबाइल-9893520965

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