दोहा त्रयी. . . शृंगार
दोहा त्रयी. . . शृंगार
मौन समर्पण के सभी, क्षीण हुए प्रतिबंध ।
अमर अधर पर हो गयी, अधर द्वन्द्व की गंध ।।
अवगुंठन में रैन के, खूब हुए उत्पात ।
अभिसारों में दे गए, अधर मधुर सौगात ।।
बंध हुए निर्बंध सब, हारे सब प्रतिरोध ।
कैसे बीती रैन फिर, कुछ भी रहा न बोध ।।
सुशील सरना / 6-1-25