दोहा पंचक . . . . शीत
दोहा पंचक . . . . शीत
ओढ़ चदरिया ओस की, शीत हुई घनघोर ।
बिना दिवाकर लग रही, ठिठुरी- ठिठुरी भोर ।।
थमा-थमा सा शीत में , है चिड़ियों का शोर ।
ठंडी-ठंडी लग रही , भोली -भाली भोर ।।
रवि किरणें ओझल हुई, छुपी धुंध में धूप ।
हाड कपाती शीत ने, छीना इसका रूप ।।
दर्शन दुर्लभ हो गए, कहीं गई रे धूप ।
घनी धुंध ने शीत में, छीना इसका रूप ।।
लगे तीर सी शीत में, शीतल तीव्र बयार ।
इसके आगे तो गए, शाल रजाई हार ।।
सुशील सरना / 1-1-25