आधुनिक समाज का सच
आधुनिक समाज का सच
आज के युग में, रिश्तों का क्या हाल हुआ,जिनमें कभी प्रेम था, अब व्यापार हुआ।
मुलाकातें ऑनलाइन, दिल के जज़्बात गुम,भावनाओं की जगह, बस शब्दों का शोर है उम।।
शादियां अब उत्सव नहीं, दिखावे का खेल,जहां प्यार नहीं, बस पैसों का मेल।
मंडप सजते हैं, मगर दिल खाली,सात फेरों की जगह, समझौते की थाली।।
रिश्तों में अब न वो गहराई रही,संबंधों में सच्चाई कहीं खो गई।
दो दिलों का मिलना अब सौदा बन गया,प्यार का सपना, बस एक धोखा बन गया।।
तलाक अब मजाक, कोई गम नहीं,एक दस्तखत में खत्म, कोई दम नहीं।
जो कभी साथ जीने-मरने की कसम खाते थे,आज कोर्ट में खड़े, एक-दूसरे को भुलाते हैं।।
प्रोग्रेसिव समाज ने तरक्की तो की,मगर रिश्तों में सादगी कहीं पीछे छूटी।
खुशियों के पीछे भागते, अकेलेपन में खो गए,दिखावे के इस दौर में, अपने भी पराए हो गए।।
आधुनिकता की चमक में, सच्चाई छिप गई,भावनाओं की जगह, बस मशीनी दुनिया बस गई।
क्या यही तरक्की है, क्या यही विकास?जहां रिश्ते टूटें, और दिलों का हो उपहास।।
आओ सोचें, क्या खोया, क्या पाया,रिश्तों की गहराई में फिर से डूब जाएं।
प्यार, विश्वास, और सच्चाई लौटाएं,आधुनिक समाज को फिर से इंसानियत सिखाएं।।