मूर्छा में जीते जीते जीवन को नर्क बना लिया।
मूर्छा में जीते जीते जीवन को नर्क बना लिया।
ये जो तूने चार पुस्तक पढ़ लिया, स्वयं को बड़ा महान समझ लिया।
असल जीवन का सत्य कुछ और है, तूने मूर्छा को ही जीवन का उद्देश्य समझ लिया।
ऐसे जीवन नहीं चलता तूने जीते जी जीवन को नर्क बना लिया।
सत्य कुछ और है जीवन का तूने इशारा को अपना घर समझ लिया।
करते भी क्या भीड़ में रहने के अलावा, कुछ समझे बिना बस मानते चला गया।
प्रेम करुणा शांति के जगह हम घृणा क्रोध हिंसा करते गए, हम वास्तविक से बचने के लिए कुछ भ्रम को पाल लिया।
जब आंख खोलने की बारी आई फिर हम अंधकार को ही सत्य मान लिया।
क्योंकि हमने जाना नहीं जीवन है समुंद्र हमने बस छोटा तालाब बना लिया।
हम थे कामना में उलझे हुए जो दिखा उसे वासना का शिकार बना लिया।
मूर्छा में जीते जीते जीवन को नर्क बना लिया, तूने झूठ को ही सत्य बना लिया।
जीवन को जानना होगा जागना होगा उठना होगा हमें कारण खोजना होगा क्यों पर जोर देना होगा।
~ रविकेश झा