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25 Dec 2024 · 2 min read

महानायक दशानन रावण भाग:02 by karan Bansiboreliya

त्रिलोक विजयता रावण हूं मैं
महाकाल की पूजा सिद्धांत है एक ब्राह्मण हूं मैं
धारा पर ले आया विष्णु और शिव को
हां वही दशानन रावण हूं मैं

गागर में भरकर सागर गजानंद पास मेरे ले आए थे
महादेव लंका पहुंचे ना,इसलिए कितने देव आए थे

एक एक शीश चढ़ाकर किया प्रसन्न मैंने भोले को
अपने भोलेपन से,अपना बना लिया भोले को

इंद्र का मैं पूरा अभिमान ले आया था
कुबेर का मैं पुष्पक विमान ले आया था

कर प्रसन्न तपस्या से ब्रह्मा को अमृत मांग लिया मैने
प्राणों को अपने,नाभी में समा लिया मैंने

बारी आई वरदान की मेरी, तब मैं सब कुछ भूल गया
सबसे अभय मांगा लेकिन वानर, मानव को भूल गया

सीता स्वयंवर के लिए सभा में आ बैठा मैं
राघव के समक्ष पहली बार आ बैठा मैं
जिसे समझता रहा साधारण सा मनुष्य
देखो लक्ष्मी नारायण के कितना करीब बैठा मैं

चलत रावण डोलत वसुंधरा भयभीत होवे इंद्र
है पुत्र मेरा जिसने जीता इंद्र को वो है इंद्र जीत

पवन पुत्र ने मुक्त किया
शनि को मेरे बंधन से
फिर उसकी दिशा बदल गई थी
सभी ग्रहों ने एक एक कर
अपनी चाल बदली
तब मेरी दशा बदल गई थी

माया पति ने अपनी माया रची
फिर हमारी कोई ना माया बची
पवन देव ने जब वेग बढ़ाया
लंका की फिर छाया ना बची

बना पुरोहित रामचंद्र का जय का वर दे आया था
रामेश्वरम की पूजा की सीता को लंका ले आया था

क्या राम नहीं जानते थे
मृग कभी सोने का नहीं होता
हरता ना सीता श्री हरि के लिए
कल्याण हमारा नहीं होता

क्या राम नहीं जाते थे
उनकी सीता अग्नि देव के पास है
जो लंका में बैठी है एक वृक्ष के नीचे
वो तो बस एहसास है

प्रथम हूं पूज्य पंडित मैं
हुआ श्री राम से दंडित मैं
अंत समय जब आया तो
हे राम बोलकर हुआ खंडित मैं

घर का भेदी लंका ढाए
भाई विभीषण सा कोई न पाए

बुरा,बहुत बुरा,इससे बुरा क्या होगा
जो भाई,भाई का ना हुआ वो दूसरे का क्या होगा

सीता हरना तो एक बहाना था
मुझे श्री राम को लंका बुलाना था

वैकुंड से विष्णु,श्री राम बन आए थे
साथ अपने मां जानकी को आए थे
हम राक्षस का उद्धार करने के लिए
प्रभु मानव और वानर रूप में आए थे

©Karan Bansiboreliya (kb shayar 2.0)
® Ujjain MP
Note: this poem already published by All poetry, Amar Ujala Kavya Pratilipi
Sahitya Hindi Articles on official website free of cost.
Thoughts Hymn publishers are published in book format in hard copy.
And today this poem publishing by sahitya pedia on the official website.

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