आँखे मुंदी तो ख्वाब लगे
आँखे मुंदी तो ख्वाब लगे
मेरे अतीत किस्सों से थे ।।
मैं किधर जाता खुद को लेकर
मेरे जख्म कुछ नए- नए थे।।१।।
चला फिर उस राह पर
तलाशने को जबाब कई।
कुछ तो घर पहुँच गए
कुछ बेघर घूम रहे यहीं ।।२।।
क्या कहता किसी से
चुप होना ही मुनासिफ था ।
मेरा उनसे दूर जाना ही
जो लहरों को वाजिफ था।।३।।
बहुत रुलाते हैं रिश्ते वो
जो दर्द को जख्म कर देते हैं।
किसे अपना कहे ये दिल
यहाँ हर मोड़ सब रुला देते हैं।।४।।
बे मतलब भरे रिश्ते नाते
आपको सहम कर रुलायेगें ।
जरूरते जिस दिन खत्म हो गई
उस दिन शमसान छोड़ आयेंगे ।।५।।