अहंकार का अंत
क्या शिकवा करना किसी से
और किस बात का गिला है।
बाद विवाद में भी भला क्या धरा है ?
मेरा दिल है गर ज़ख्मों से लबरेज ,
तो तेरा दिल भी तो अंगारों से भरा है ।
क्या ले जाना है संसार से ,
न यह तेरा न मेरा है ।
रिश्तों का है यह झूठा ,फरेबी जंजाल ,
आ परस्पर अहंकारों से भरा है ।
तौबा कर ले अपने गुनाहों से फौरन ,
वरना मौत का फरिश्ता दर पर खड़ा है ।
फिर न मिलेगा कभी अवसर क्षमा मांगने का,
खो देगा तब साहस भी पश्चाताप करने का!
आत्मग्लानि से भरी हुई होंगी तेरी निगाहें,
ढूंढेगी जब मुझे दर बदर होंठों पर होंगी आहें।
मेरा पता न मिल सकेगा तुझे ,
कहां तू मुझे तलाश करेगा ?
फिर बैठकर सोचना तन्हाई में,
क्या दे दिया तेरे झूठे अहंकार ने तुझे ,
जिसके लिए तू हर क्षण मरा है ।
जी हां ! अहंकार जीवन नहीं देता,
यह तो वो क्षय रोग है ,
जिसकी पीड़ा और त्रासदी में ,
व्यक्ति सदा धीरे धीरे मरा है ।