दौर चिट्ठियों का बहुत ही अच्छा था
दौर चिट्ठियों का बहुत ही अच्छा था
उस पर लिखा एक एक शब्द बेहद ही सच्चा था
यादें बन जाती थी वो चिट्ठियां
जब एक दूसरे को दी जाती थी
ज़ाहिर करते थे अपने जज़्बात
प्रेम शब्दों में पिरोए जाते थें।
आजकल का दौर उंगलियों पर आकर अटक गया है
पल भर में सब कुछ मिट जाता है
धुंधली होती यादें नज़र भी नहीं आती
ना जाने कब वो जान पहचान से
अंजान में बदल जाता है।