इन दरकती रेत की दीवारों से,
23/179.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
जिंदगी के रंगों को छू लेने की,
शलभ से
PRATIBHA ARYA (प्रतिभा आर्य )
भीम के दीवाने हम,यह करके बतायेंगे
जिसने अपने जीवन में दुख दर्द को नही झेला सही मायने में उसे क
मैं ढूंढता हूं रातो - दिन कोई बशर मिले।
चंद सवालात हैं खुद से दिन-रात करता हूँ