उल्फ़त के अंजाम से, गाफिल क्यों इंसान ।
क़म्बख्त ये बेपरवाही कहीं उलझा ना दे मुझको,
चिंतन का विषय अशिक्षा की पीड़ा,, बेटा बचाओ
नज़रें बयां करती हैं, लेकिन इज़हार नहीं करतीं,
मुहब्बत की पहली, ही सीढ़ी इनायत
दो वक्त की रोटी नसीब हो जाए
मुझे मेरी ""औकात ""बताने वालों का शुक्रिया ।
कुछ अजीब सा चल रहा है ये वक़्त का सफ़र,
आँख भर जाये जब यूँ ही तो मुस्कुराया कर
नित जीवन के संघर्षों से जब टूट चुका हो अन्तर्मन, तब सुख के म
हो तन मालिन जब फूलों का, दोषी भौंरा हो जाता है।
*पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर, रामपुर*
न छुए जा सके कबीर / मुसाफिर बैठा