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16 Sep 2024 · 1 min read

इश्क़ ज़हर से शर्त लगाया करता है

“इश्क़ ज़हर से शर्त लगाया करता है”

इश्क़ ज़हर से शर्त लगाया करता है,
दिल को दर्द से भरमाया करता है!!

चुपचाप निगाहों में खो जाता है,
आंसुओं से रिश्ता निभाया करता है!!

हर रात चाँद से ही बातें करता है,
ख़्वाबों को तन्हाई में सजाया करता है!!

वो जो टूटे हैं, उन्हें जोड़ा करता है,
बिखरी हुई उम्मीदें समेटा करता है!!

राह में कांटों से दोस्ती कर ली,
फिर भी गुलों से दामन सजाया करता है!!

जो आग दिल में लगी हो चुपचाप,
उससे हर दिन खुद को तपाया करता है!!

हवाओं से बगावत करता है अक्सर,
फिर भी तस्लीम में सर झुकाया करता है!!

वो जो मुक़द्दर से जंग लड़ता है,
उसी को खुदा कहकर बुलाया करता है!!

इश्क़ तो ताश के पत्तों सा खेल है,
जो हार के भी जीत पाया करता है!!

हंसते हुए जख्मों को छुपाया करता है,
खुशियों को गम से मिलाया करता है!!

इश्क़ ज़हर से शर्त लगाया करता है,
फिर ज़हर को अमृत बनाया करता है!!

©️ डॉ. शशांक शर्मा “रईस”

144 Views
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