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9 Mar 2025 · 2 min read

"आधुनिक मातृत्व: शिक्षा, सोशल मीडिया और जिम्मेदारी"(अभिलेश श्रीभारती)

महिलाओं के रोल मॉडल में मां सर्वप्रथम और सबसे पहले होती है। मैं दुनिया की सबसे बड़ी रोल मॉडल, सभी माताओं को नमन करता हूं। मां सिर्फ जन्म देने वाली नहीं, बल्कि समाज के भविष्य की निर्मात्री होती हैं। एक मां की गोद से ही एक सभ्य, संस्कारी, और जिम्मेदार नागरिक का निर्माण होता है।
वो तो हमेशा पूजनीय थी और हमेशा पूजनीय रहेगी चाहे युग कोई भी क्यों ना हो। युग भले बदल जाए लेकिन मां का दायित्व नहीं बदल सकता।

लेकिन आज, जब शिक्षा और तकनीक ने समाज को पूरी तरह बदल दिया है, एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है—क्या आधुनिक माताएं अपनी पारंपरिक भूमिका को पूरी तरह निभा पा रही हैं?
हालांकि आदरणीय सभी माताओं से सवाल पूछने का ना तो मेरा कोई हक है ना ही कोई अधिकार फिर भी सामाजिक परिवेश की बदलते स्वरूप को लेकर चिंतित हूं इसीलिए मैं देश के सभी माताओं से सवाल पूछने का साहस करते हुए एक जघन्य अपराध कर रहा हूं और इस अपराध के लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूं: अभिलेश श्रीभारती

पुरानी पीढ़ी की माताएं भले ही औपचारिक शिक्षा से वंचित थीं, लेकिन वे अपने अनुभव, संस्कार, और अनुशासन के बल पर अपने बच्चों को जीवन की सच्ची राह दिखाती थीं। उनके मार्गदर्शन में बच्चे न केवल डॉक्टर, इंजीनियर, अधिकारी बने बल्कि वे समाज के प्रति जिम्मेदार और सशक्त नागरिक भी बनते थे।
लेकिन
आज की माताएं शिक्षित हैं, जागरूक हैं, लेकिन क्या वे अपने बच्चों को वही नैतिकता, अनुशासन और नेतृत्व क्षमता प्रदान कर पा रही हैं? सोशल मीडिया, डिजिटल दुनिया और आधुनिक जीवनशैली ने पालन-पोषण की शैली को प्रभावित किया है। क्या यह बदलाव बच्चों के भविष्य के लिए सही दिशा में जा रहा है?

एक लेखक के रूप में मैं सभी माताओं से यह सवाल पूछना चाहता हूं—
क्या आधुनिक शिक्षा और तकनीकी प्रगति के बावजूद मातृत्व की वह परंपरागत भूमिका कहीं कमजोर पड़ रही है?
क्या सोशल मीडिया की बढ़ती पकड़ बच्चों के नैतिक विकास और पारिवारिक मूल्यों को प्रभावित कर रही है?
क्या आज की माताएं, जो पहले से अधिक शिक्षित और आत्मनिर्भर हैं, अपने बच्चों को वैसा ही अनुशासन और संस्कार दे रही हैं, जैसा पहले की पीढ़ी देती थी?

यह सवाल केवल माताओं से नहीं, बल्कि पूरे समाज से है। क्योंकि किसी भी राष्ट्र की जड़ें उसकी माताओं की शिक्षा, संस्कार और उनके द्वारा दी गई सीख में होती हैं। तो क्या हम सही दिशा में जा रहे हैं?
नोट: यह लेखक कि अपने निजी विचार है।
लेखक:
अभिलेश श्रीभारती
सामाजिक शोधकर्ता, विश्लेषक, लेखक

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