“हम अब मूंक और बधिर बनते जा रहे हैं”
माया
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
अनमोल जीवन के मर्म को तुम समझो...
*प्रेम*
डा0 निधि श्रीवास्तव "सरोद"
*संगीतमय रामकथा: आचार्य श्री राजेंद्र मिश्र, चित्रकूट वालों
स्वान की पुकार/ svaan ki pukar by karan Bansiboreliya
शरीर मोच खाती है कभी आपकी सोच नहीं यदि सोच भी मोच खा गई तो आ
अपनी आंखों को मींच लेते हैं।
ज़माने में हर कोई अब अपनी सहूलियत से चलता है।
उनको मेरा नमन है जो सरहद पर खड़े हैं।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"