जल्दी-जल्दी बीत जा, ओ अंधेरी रात।
मरूधर रौ माळी
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
अब शुरू की है मुहब्बत की कवायद हमने
समा गये हो तुम रूह में मेरी
मुनाफ़िक़ दोस्त उतना ही ख़तरनाक है
*जातिवाद ने किया देश का, पूरा बंटाधार (गीत)*
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किसी के साथ हुई तीखी नोंक-झोंक भी