Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
25 Aug 2024 · 2 min read

मेरा गांव अब उदास रहता है

मेरा गांव अब उदास रहता है..

लड़के जितने भी थे मेरे गांव में।
जो बैठते थे दोपहर को आम की छांव में।
बड़ी रौनक हुआ करती थी जिनसे घर में
वो सब के सब चले गए शहर में।
ऐसा नही कि रहने को मकान नही था।
बस यहां रोटी का इंतजाम नहीं था।
हास परिहास का आम तौर पर उपवास रहता है।
मेरा गांव अब उदास रहता है।।

बाबू जी ठंड में सिकुड़े और पसीने मे नहाए थे।
तब जाकर तीन कमरे किसी तरह बनवाए थे।
अब तीनों कमरे खाली हैं मैदान बेजान है।
छतें अकेली हैं गलियां वीरान हैं।।
मां का शरीर भी अब घुटनों पर भारी है।
पिता को हार्ट और डाईविटीज की बीमारी है।
अपने ही घर में मां बाप का वनवास रहता है।
मेरा गांव अब उदास रहता है।।

छत से बतियाते पंखे, दीवारें और जाले हैं।
कुछ मकानों पर तो कई वर्षों से तालें हैं।।
बेटियों को ब्याह दिया गया ससुराल चली गई।
दीवाली की छुरछुरी होली का गुलाल चली गई।
मोहल्ले मे जाओ जरा झांको कपाट पर।
बैठे मिलेंगे अकेले बाबू जी, किसी कुर्सी किसी खाट पर।।
सावन के झूले उतर गए भादों भी निराश रहता है।
मेरा गांव अब उदास रहता है।।

कबड्डी वालीबाल अंताक्षरी, सब वक्त की तह में दब गए।
हमारे गांव के लड़के कमाने अहमदाबाद जब गए।।
अब रामलीला दुर्गापूजा की वो बात नही रही।
गर्मियों मे छतों पर हलचल की रात नही रही।।
दालान में बैठे बुजुर्ग भी स्वर्ग सिधार गए।
जो जीत गए थे मुश्किलों से वो बीमारियों से हार गए।।
ये अंधी दौड़ तरक्कियों की गांव सूना कर गई।
खालीपन का घाव अब तो दोगुना कर गई।
जाने वाले चले गए, कहां कोई अनायास रहता है।
मेरा गांव अब उदास रहता है।।

Loading...