तुम बिन
तुम बिन
यह मन लगता कभी न तुम बिन।
आयेगा वह क्षण कब शुभ दिन??
ग्लानि बहुत है अनुपम प्रियवर।
तुम्हीं परम प्रिय मधुर मनोहार।।
आओगे कब यह बतलाओं ?
मृत्यु निशा में नहीं सुलाओ।।
प्यारे मित्र आसरा तेरा।
तुम्हीं सत्य प्रिय प्यार घनेरा।।
तुम रहते हो वृंदावन में।
राधा-कृष्ण मनस-आँगन में।।
तुझ को पाया कुंजगली में।
अब प्रिय दिखते प्रेम गली में।।
मिलते हो फिर हट जाते हो।
मुस्काते पर कट जाते हो।।
आओ मेरे मधुर बिहारी।
सिंचित कर उर -मन की क्यारी।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।*तुम बिन*
यह मन लगता कभी न तुम बिन।
आयेगा वह क्षण कब शुभ दिन??
ग्लानि बहुत है अनुपम प्रियवर।
तुम्हीं परम प्रिय मधुर मनोहार।।
आओगे कब यह बतलाओं ?
मृत्यु निशा में नहीं सुलाओ।।
प्यारे मित्र आसरा तेरा।
तुम्हीं सत्य प्रिय प्यार घनेरा।।
तुम रहते हो वृंदावन में।
राधा-कृष्ण मनस-आँगन में।।
तुझ को पाया कुंजगली में।
अब प्रिय दिखते प्रेम गली में।।
मिलते हो फिर हट जाते हो।
मुस्काते पर कट जाते हो।।
आओ मेरे मधुर बिहारी।
सिंचित कर उर -मन की क्यारी।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।