23/187.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
अब देख लेने दो वो मंज़िल, जी भर के साकी,
शिद्दतों का खुमार है शायद
दगा और बफा़
Dr. Akhilesh Baghel "Akhil"
आतिशी ने लाल कुर्सी पर,रख लीं केजरीवाल की खड़ाऊं
पर्वतों से भी ऊॅ॑चा,बुलंद इरादा रखता हूॅ॑ मैं
एक ना एक दिन ये तमाशा होना ही था
चुप रहने की आदत नहीं है मेरी
मिलोगे जब हमें प्रीतम मुलाकातें वही होगी
Jyoti Shrivastava(ज्योटी श्रीवास्तव)
चाहे अकेला हूँ , लेकिन नहीं कोई मुझको गम
- बहुत याद आता है उसका वो याराना -
फ़िलिस्तीन-इज़राइल संघर्ष: इसकी वर्तमान स्थिति और भविष्य में शांति और संप्रभुता पर वैश्विक प्रभाव
पर्वत, दरिया, पार करूँगा..!
बस पल रहे है, परवरिश कहाँ है?
मरूधर रा मिनखं
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया