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5 Aug 2024 · 1 min read

शम्भु शंकरम

नमामि शम्भु शंकरम

नमामि शम्भु शंकरम भजामि विश्वनाथ को।
सदैव आशुतोष को सहर्ष दिव्यनाथ को।
कणे -कणे विराजमान संग में उमा सदा।
गणेश वंदना करें सप्रेम नम्र सर्वदा।
रहें सदेह ब्रह्म- विष्णु- नारदादि देवता।
प्रसन्न शंकरम विनम्र नीलकंठ भव्यता।
स्वतन्त्रता सकारते सहिष्णु बुद्धि संपदा।
अनादि अन्तहीन शक्ति चूर-चूर आपदा।
जटा विशाल गंगवास भव्य भाल चंद्रमा।
सदैव शैलजा सुसंग अमृता मनोरमा।
नदी-पहाड़-प्राकृतिक छटा जिसे पसन्द है।
भजो सदा महेश्वरम त्रिकाल दर्श स्कंद हैं।
मिले सदैव प्रेम-शांति-स्नेह रस अमूल्यता।
रहे सहर्ष सावनी सुगंध रम्य सौम्यता।
विनष्ट विघ्न-क्लेश-द्वेष शम्भु के प्रसाद से।
दिखे सदैव रोम हर्ष स्तुत्य ब्रह्म नाद से।

साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।

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