चीत्रोड़ बुला संकरी, आप चरण री ओट।
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
खोने के लिए कुछ ख़ास नहीं
आखिरी अल्फाजों में कहा था उसने बहुत मिलेंगें तेरे जैसे
तवाफ़-ए-तकदीर से भी ना जब हासिल हो कुछ,
लुटाकर जान करते हैं तिरंगे को नमन सैनिक
वृक्ष हमारी सांस हैं , सबका हैं विश्वास ।
कभी बहुत होकर भी कुछ नहीं सा लगता है,
संपूर्ण राममय हुआ देश मन हर्षित भाव विभोर हुआ।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
इक ज़िंदगी मैंने गुजारी है
मैं इस दुनिया का सबसे बुरा और मुर्ख आदमी हूँ
लोन के लिए इतने फोन आते है