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11 Jul 2024 · 1 min read

अब्र ज़ुल्फ़ों के रुखसार पे बिखर जाने दो।

अब्र ज़ुल्फ़ों के रुखसार पे बिखर जाने दो।
इस खामोशी को कुछ ।और संवर जाने दो।
इंतज़ार सहर का ज़ह्न में हो क्यों कर बाकी –
शब् ये ख़्वाबों की बाहों में गुजर जाने दो।

सुशील सरना

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