*आओ पूजें वृक्ष-वट, करता पर-उपकार (कुंडलिया)*
न घमण्ड में रहो, न गुरुर में रहो
-मोहब्बत का रंग लगाए जाओ -
है कोई तेवरी वाला जो... +शम्भुदयाल सिंह ‘सुधाकर’
दूसरी मोहब्बत भी बेमिसाल होती है,
हो सकता है कि अपनी खुशी के लिए कभी कभी कुछ प्राप्त करने की ज
बेजुबाँ सा है इश्क़ मेरा,
मुक्तक
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
मिलते तो बहुत है हमे भी चाहने वाले
मेरी आंखों के काजल को तुमसे ये शिकायत रहती है,