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11 Jun 2024 · 1 min read

मन हर्षित है अनुरागमयी,इठलाए मौसम साथ कई।

मन हर्षित है अनुरागमयी,इठलाए मौसम साथ कई।
सुख की संध्या दु:ख की रजनी,कातर मानस के करतब से
श्रृंगार भरे क्षण जीवन के,हैं ठगे ठगे बेमतलब से
सब खोकर पाया कुछ ऐसा,आह्लादमयी और कालजयी
मन हर्षित है अनुरागमयी।

देखे को कर के अनदेखा,जाने को कर के अनजाना
जब अंतरतम में शून्य भरा,तब मैंने मुझको पहचाना
धरती से लेकर अंबर तक,लगता सब कुछ मधुमासमयी
मन हर्षित है अनुरागमयी।

निज को साधा सब साध लिया,हैं चकित चकित दृग चंचल से
भटके पंछी चहुं ओर उड़े,आख़िर लिपटे तरु आंचल से
जबसे प्रज्ञा के नयन खुले,निशिदिन होती हर बात नई
मन हर्षित है अनुरागमयी।

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