हिज़ाब को चेहरे से हटाएँ किस तरह Ghazal by Vinit Singh Shayar

सरेआम हक़ उन पर जताएँ किस तरह
दिल की बात अपनी बताएँ किस तरह
जुल्फें हैं कि उड़ उड़ के आती है आँख पे
पूनम पे छाया बादल हटाएँ किस तरह
पड़ोस में रह कर जो रहें मुझसे बेखबर
वो दे रहें हैं मुझको सदाएँ किस तरह
आँखों के इशारे तो हमने देखे हैं बहोत
हिज़ाब को चेहरे से हटाएँ किस तरह
ख़त वो जो कभी उनको भेजा नहीं मैंने
हम पूछते हैं उनको जलाएँ किस तरह
~विनीत सिंह
Vinit Singh Shayar