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14 May 2024 · 1 min read

क्या मंद मंद मुस्कराते हो

क्या मंद मंद मुस्कराते हो
अंदर ही अंदर मरते जाते हो
अब खुल के तुम भी हँस लिया करो
ऐसे क्यूँ भला शर्माते हो तुम

किस बात का डर भला तुमको
किस चीज़ का करते हो शिकवा गिला
नसीब में जितना लिखा मिला
खाते और कमाते हो तुम

जो कल बोया वो काटा अब
और आज का बोया बढ़ेगा कल
बहने दो समय की धार को तुम
क्यूँ गीत दुखों के गाते हो तुम

राजा भी तुम्ही और रंक भी तुम्ही
कायर भी तुम और दबंग भी तुम्ही
सब खेल मनों का किस्मत का
फिर काहे तुम घबराते हो तुम

क्षण भंगुर हर चीज़ है यहाँ
नश्वर हर एक चीज़ है यहाँ
पा भी लो तो क्या हो जाए
मिट्टी पर क्यों इतराते हो तुम

अनिल “आदर्श”

Language: Hindi
73 Views
Books from अनिल "आदर्श"
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