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5 May 2024 · 1 min read

*श्रमिक*

मुक्तक

कभी गेंती कभी रेती, कभी छेनी चलाता है।
अटल गिरिराज को भी वह, सतह तक खींच लाता है।
गलाकर हड्डियाँ अपनी, जगत का रूप जो गढ़ता,
सजा ऐसी मिली उसको, सजा खुद को न पाता है।

–©नवल किशोर सिंह
01/05/2024

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 88 Views

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