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12 May 2024 · 1 min read

कहानी न पूछो

बुझी आग से जिंदगानी न पूछो।
लहर से कदम की निशानी न पूछो।

किया कत्ल जिसने गले से लगा कर-
उसी से प्रणय की कहानी न पूछो।

लहर ने जगाया भँवर ने सुलाया-
प्रणय के पथिक से रवानी न पूछो।

पढ़ो जिल्द सारा खुला बस पथिक का-
रुका अक्स पर दर्द पानी न पूछो।

नहीं याद कब बूँद सावन गिरा था-
हवा कब चली थी सुहानी न पूछो।

गुजरता रहा यह सफर जिंदगी का-
मिटी मौज-मस्ती जवानी न पूछो।

नहीं था बहर मौन मिथलेश पहले-
मगर किस लिये बेजुबानी न पूछो।

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