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2 May 2024 · 1 min read

उषा का जन्म

जब हुआ उषा का जन्म, मृदुल-
शीतल-सुरभित समीर डोली
मुर्गे की बाँग सुनाई दी
सुन पड़ी धतूरे की बोली

विहगों ने त्याग बसेरा निज
कलरव से जग को जगा दिया
शैथिल्य-निराशा-कुंठा को
जग के जीवन से भगा दिया

फिर से दुनिया ने गति पायी
घर-घर जलपान लगा बनने
मुनियों के आश्रम मुखर हुए
इत-उत यज्ञाग्नि लगी जलने

कुछ हाथ जोड़, कुछ हाथ बाँध
जनसेवा में सन्नद्ध हुए
जो परमेश्वर के परम भक्त
वे उसके प्रति प्रतिबद्ध हुए

करके गुरुओं का पद-वंदन
सुख पाते हैं अन्तेवासी
प्रातः की छवि नयनाभिराम
युग-युग से अब तक अविनाशी

यह गृही-विरागी-अनुरागी
सब पर आनंद लुटाती है
भरती है सबमें नवोत्साह
जन-जन के मन को भाती है

महेश चन्द्र त्रिपाठी

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