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28 Apr 2024 · 3 min read

पुनीत /लीला (गोपी) / गुपाल छंद (सउदाहरण)

पुनीत /लीला (गोपी) / गुपाल छंद (विधान – सउदाहरण ,

पुनीत छंद (मात्रिक छंद)
15 मात्राओं का सम मात्रिक छंद है। दो दो चरण या चारों चरण समतुकांत होते हैं। पर चारों चरण का तुकांत मनोहारी होता है , बैसे कुछ विद्वान सिर्फ़ अंत में गागाल मानते है पर
इसकी सही मात्रा मापनी निम्न है-
चौकल +छक्कल + तगण (गुरु गुरु लघु) = 15 मात्राएं ।

(चौकल में -2-2. ,211. ,1111 या 112 हो सकता है,
छक्कल में – 2 2 2, 2 4, 4 2, 3 3 हो सकता है।)

लोगों का देखा व्योहार |
मतलब का मतलब से प्यार ||
चलता यहाँ आर से पार |
मतलब छूटे तब है खार ||

धोखे ‌से मिलता है ताज |
करते जनता पर तब राज ||
जिनकी नजर बनी है बाज |
उनको कब आती है लाज ||

उनकी मिली जुली है‌ ताल |
बनते है वह माला माल ||
जनता रहे बजाती गाल |
उनकी पौ- बारह है चाल ||

खाने में पूरे लंगूर |
चुगते जनता का अंगूर ||
रहते निकट नहीं है दूर |
शोषण करके वह है शूर ||

सुभाष सिंघई
~~~~~~~~~~~~~
पुनीत छंद (मात्रिक छंद)
मुक्तक

जनता गूँज रही आबाज |
रखना सुंदर अब है राज |
सुनकर जाति-पात के भेद –
आती सबको अब है लाज |

रखना भारत माँ की शान |
गाना जन गण मन का गान |
दुनिया जब खोजेगी नूर –
बनना प्रखर रश्मि के भान |
~~~~~~~~~~~~
पुनीत छंद (मात्रिक छंद) गीतिका
समांत आना , पगांत यार

चलते जाना गाना यार |
भारत वतन बताना यार |

माटी यहाँ सुहानी नूर ,
सोंधी खुश्बू पाना यार |

सूरज चंदा माने पूज्य ,
इनसे प्रेम सुहाना यार |

पावन गंगा यमुना वेग ,
इनसे नेह निभाना यार |

साहस रखकर चलना चाल ,
दुश्मन शीश झुकाना यार |

भारत नहीं झुका है शीष ,
है इतिहास पुराना यार |

संस्कृति रखती उजला रूप ,
मेरा देश खजाना यार |

सुभाष सिंघई
~~~~~~~~

#लीला छंद (गोपी)(15 मात्रिक )
प्रारंभ क्रमशा: त्रिकल द्विकल से , चरणांत दीर्घ
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
लीला छंद

अकल के दुश्मन मिल जाते |
ज्ञान भी अपना बतलाते ||
बोल भी मद का रहता है |
निजी स्वर सबसे कहता है ||
~~~~~~~~~~~~

लीला(गोपी) छंद (15 मात्रिक )
प्रारंभ त्रिकल द्विकल से , चरणांत दीर्घ
( मुक्तक)

मनुज है अब बड़ा सयाना |
चाहता सब कुछ वह पाना |
पराया माल झटकने में ~
घूमता बनकर दीवाना |

~~~~~~~~~

#लीला छंद (गोपी छंद )(15 मात्रिक ) √√
प्रारंभ त्रिकल द्विकल से , चरणांत दीर्घ
गीतिका , स्वर यैर , पदांत – नहीं है

झूँठ का सिर पैर नहीं है |
देखता कुछ खैर नहीं है |

रखें वह हमसे कुछ दूरी
जबकि कुछ भी बैर नहीं है |

अजब दास्ता सुनने मिलती ,
कहे मेरा मैर नहीं है |

मानते हम फिर भी अपना
जान लो वह गैर नहीं है |

सुभाषा किससे क्या कहना ,
हमारा उनसे कैर नहीं है |

कैर = शत्रुता , बिना पत्ती का कंटीला पेड़
~~~~~~~~~~~~~~~~~~

गुपाल छंद (15 मात्रिक )
चरणांत लगाल (जगण ) होने पर-गुपाल छंद

आगे खोजो सदा प्रकाश |
अंधकार का करो विनाश ||
यश फैलाओ बड़े सुदूर |
साहस रखना तुम भरपूर ||

जग में वही लोग मजबूर |
नहीं जानते जो निज नूर ||
रहता उनसे यश भी दूर |
बने रहें जो मुँह से शूर ||
~~`~~~~~~~~~~~

गुपाल छंद (15 मात्रिक )
चरणांत लगाल (जगण ) मुक्तक

जग में रहते सदा अनाथ |
रहें ठोकते अपना माथ |
बने आलसी करें न कर्म –
बाँधे रहते जो निज हाथ |

कहता सच्ची बात सुभाष |
उनको मिलता सदा प्रकाश |
रहते है जो साहसवान –
उनके घर हो सुंदर प्राश |
~~~~~~~~~~
गुपाल छंद (15 मात्रिक )
चरणांत लगाल (जगण ) गीतिका

आओ मिलकर करें प्रभात |
निज जीवन में भरें प्रभात |

कर्म हीन की करो न बात ,
वह तो निज का हरें प्रभात |

लगन जहाँ है सुंदर नूर ,
उनके घर यश धरें प्रभात |

आदर्शों को रखो उदार ,
नित नूतन तब झरें प्रभात |

करें मधुरता का सुख गान ,
उनके कदमों बहें प्रभात |

©®सुभाष_सिंघई , जतारा ( टीकमगढ़ ) म० प्र०

Language: Hindi
167 Views

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