जितना मिला है उतने में ही खुश रहो मेरे दोस्त
"राजनीति में आत्मविश्वास के साथ कही गई हर बात पत्थर पर लकीर
कुछ इस तरह टुटे है लोगो के नजरअंदाजगी से
संस्कार और अहंकार में बस इतना फर्क है कि एक झुक जाता है दूसर
गजल
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
नादान नहीं है हम ,सब कुछ समझते है ।
ग़ज़ल गीत तन्हा......., ही गाने लगेंगे।
वक्त और हालात जब साथ नहीं देते हैं।
“बचपन में जब पढ़ा करते थे ,
सब लोग जिधर वो हैं उधर देख रहे हैं
कर शरारत इश्क़ में जादू चलाया आपने ।
Jyoti Shrivastava(ज्योटी श्रीवास्तव)
संस्कार की खिड़कियां, हुई जरा क्या बंद
सारंग-कुंडलियाँ की समीक्षा