Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
11 Apr 2024 · 1 min read

ଅମ୍ଳଜାନ ପେଟ ଫୁଲିବା

ଖରାଦିନେ
ପ୍ରବଳ ଖରା
ତୃଷ୍ଣା ପାଇଁ ପାଣି ମାଗୁଛନ୍ତି
ଗଛଗୁଡିକ ଏଠାରେ ଅଛି
ଶୁଖିଯାଉଛି
କେବଳ ଗଛ ନୁହେଁ
ମନୁଷ୍ୟ. . . ଏହା ସହ

ସଂକ୍ରମଣରେ
ଅକ୍ସିଜେନ ଖୋଜୁଛନ୍ତି
ମଣିଷ ଭଳି…

ଏହି ପୃଥିବୀ
ବିନା ପାଣିରେ
ନିଃଶ୍ୱାସ ନେଉଛି….

ଅମ୍ଳଜାନ ଦେଉଥିବା ଗଛ
ଶୁଖିବା ଏବଂ ଶୁଖିବା
ମଣିଷ ଅମ୍ଳଜାନ ଖୋଜୁଛି
ରୋଗୀଙ୍କ ପାଖକୁ ଫେରୁଛନ୍ତି…

+ଓଟେରି ସେଲଭା କୁମାର

92 Views

You may also like these posts

डॉ मनमोहन जी को विनम्र श्रद्धांजलि
डॉ मनमोहन जी को विनम्र श्रद्धांजलि
Ram Krishan Rastogi
कुंडलियां
कुंडलियां
seema sharma
घमण्ड बता देता है पैसा कितना है
घमण्ड बता देता है पैसा कितना है
Ranjeet kumar patre
जिंदगी एक पहेली
जिंदगी एक पहेली
Sunil Maheshwari
👌चोंचलेबाजी-।
👌चोंचलेबाजी-।
*प्रणय*
तुमने अखबारों में पढ़ी है बेरोज़गारी को
तुमने अखबारों में पढ़ी है बेरोज़गारी को
Keshav kishor Kumar
मेरे ख्याल से जीवन से ऊब जाना भी अच्छी बात है,
मेरे ख्याल से जीवन से ऊब जाना भी अच्छी बात है,
पूर्वार्थ
मात गे हे डोकरा...
मात गे हे डोकरा...
TAMANNA BILASPURI
🚩जाग्रत हिंदुस्तान चाहिए
🚩जाग्रत हिंदुस्तान चाहिए
Pt. Brajesh Kumar Nayak / पं बृजेश कुमार नायक
ए चाँद
ए चाँद
sheema anmol
भीम आयेंगे आयेंगे भीम आयेंगे
भीम आयेंगे आयेंगे भीम आयेंगे
gurudeenverma198
श्याम पर्दा लगा दो करेंगे बतियॉ
श्याम पर्दा लगा दो करेंगे बतियॉ
C S Santoshi
भूल चुके हैं
भूल चुके हैं
Neeraj Agarwal
मैं हाथों में तेरा नाम लिखती हूं,
मैं हाथों में तेरा नाम लिखती हूं,
Jyoti Roshni
किवाङ की ओट से
किवाङ की ओट से
Chitra Bisht
पीड़ा..
पीड़ा..
हिमांशु Kulshrestha
छोड़ जाते नही पास आते अगर
छोड़ जाते नही पास आते अगर
कृष्णकांत गुर्जर
सही सलामत आपकी, गली नही जब दाल
सही सलामत आपकी, गली नही जब दाल
RAMESH SHARMA
ग़ज़ल _ कहाँ है वोह शायर, जो हदों में ही जकड़ जाये !
ग़ज़ल _ कहाँ है वोह शायर, जो हदों में ही जकड़ जाये !
Neelofar Khan
औचक निरीक्षण
औचक निरीक्षण
Paras Nath Jha
NEW88bet
NEW88bet
new88betus1
शीर्षक: लाल बहादुर शास्त्री
शीर्षक: लाल बहादुर शास्त्री
Harminder Kaur
*कलम (बाल कविता)*
*कलम (बाल कविता)*
Ravi Prakash
" हिम्मत "
Dr. Kishan tandon kranti
#पितरों की आशीष
#पितरों की आशीष
वेदप्रकाश लाम्बा लाम्बा जी
An eyeopening revolutionary poem )क्यूँ दी कुर्बानी?)
An eyeopening revolutionary poem )क्यूँ दी कुर्बानी?)
komalagrawal750
Yes some traumas are real.... time flies...everything change
Yes some traumas are real.... time flies...everything change
Ritesh Deo
समन्वय आनन्द पर्व का
समन्वय आनन्द पर्व का
Karuna Bhalla
मानसून को हम तरसें
मानसून को हम तरसें
प्रदीप कुमार गुप्ता
यूं टूट कर बिखरी पड़ी थी तन्हाईयां मेरी,
यूं टूट कर बिखरी पड़ी थी तन्हाईयां मेरी,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
Loading...